लेखक: सिर्गेइ पिरिल्यायेव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक: सिर्गेइ पिरिल्यायेव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
। राजा विश्वजीत भी स्वयंबर में भाग लेने के लिए तैयार हो गये। । राजा विश्वजीत भी स्वयंबर में भाग लेने के लिए तैयार हो गये।
पर यदि अपना जैसा कोई और दुःखी दिख जाए तो भारी तसल्ली मिलती है। पर यदि अपना जैसा कोई और दुःखी दिख जाए तो भारी तसल्ली मिलती है।
मेरे पापा वीर बड़े, कोरोना के साए में बढ़े चले मेरे पापा वीर बड़े, कोरोना के साए में बढ़े चले
देशभक्ति की चमक स्पष्ट दिखाई दे रही थी, जिस देश में ऐसे वीर सपूत हो, उसका कौन बाल बांका कर सकता है। देशभक्ति की चमक स्पष्ट दिखाई दे रही थी, जिस देश में ऐसे वीर सपूत हो, उसका कौन बा...
अरे छोड़ो न ! जिसका दाना-पानी जहां लिखा होता है।" अरे छोड़ो न ! जिसका दाना-पानी जहां लिखा होता है।"